संचार का युग और राष्ट्रीय पत्रकारिता की दिशा
देहरादून, 11 मई। हरिशंकर सिंह की रिपोर्ट
देश और समाज के लिए समर्पित पत्रकारिता को जब नारद के आदर्शों से जोड़कर देखा जाता है, तो संवाद महज सूचना का माध्यम नहीं रह जाता, वह राष्ट्रनिर्माण का औजार बन जाता है। विश्व संवाद केंद्र, देहरादून द्वारा नारद जयंती एवं पत्रकारिता दिवस के अवसर पर आयोजित भव्य कार्यक्रम में अखिल भारतीय प्रचार टोली (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के संयोजक व ओजस्वी वक्ता मुकुल कानितकर ने यही बात पूरे तथ्य, तर्क और ताप के साथ रखी।
मेडिकल कॉलेज सभागार में श्रोताओं से खचाखच भरे वातावरण में उन्होंने कहा, “वर्तमान समय संचार व संवाद का समय है। संवाद यदि राष्ट्रीयता के विचार से संपृक्त न हो तो वह दिशाहीन बन जाता है। ऐसे में संवादों को गहन विचार के बाद ही प्रसारित किया जाना चाहिए।”
‘संवाद से राष्ट्र सुदृढ़ होता है’
मुकुल कानितकर ने अपने संबोधन में रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्य कालखंडों से उदाहरण प्रस्तुत करते हुए बताया कि किस प्रकार संवाद ने उन कालों में समाज और शासन की दिशा तय की। उन्होंने कहा कि आधुनिक पत्रकारिता को उस संवादशीलता की पुनर्खोज करनी होगी जिसमें सूचना के साथ मूल्यबोध जुड़ा हो।
उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का संदर्भ देते हुए चेताया कि मीडिया की जल्दबाजी कई बार राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुँचा सकती है। “ऐसे संवादों को विस्तार देने से हमें बचना चाहिए,” उन्होंने दो टूक कहा। “देशहित में संवाद वही हो जो पूरी जानकारी, प्रमाण और विवेक पर आधारित हो।”
उत्कृष्ट पत्रकारों का सम्मान: पत्रकारिता को प्रेरणा
कार्यक्रम में पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले पत्रकारों को सम्मानित किया गया। इनमें शामिल रहे –
भारत चौहान, रश्मि खत्री, जगदीश पोखरियाल, नागेंद्र उनियाल, राजीव खत्री व भुवन उपाध्याय।
इन सभी पत्रकारों ने अपने-अपने माध्यमों से जनसरोकार की पत्रकारिता को नई ऊंचाई दी है।
हिमालय हुंकार का विशेषांक और ‘गंगा गाथा’ का विमोचन
कार्यक्रम में विश्व संवाद केंद्र द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘हिमालय हुंकार’ के नारद जयंती विशेषांक का विमोचन किया गया। इसके साथ ही नाटक-रूपांतरण ‘गंगा गाथा’ पुस्तक का लोकार्पण भी किया गया। इस मौके पर संस्कृति, संवाद और प्रकृति की त्रिवेणी एक मंच पर साकार होती दिखी।
UPES कुलपति की स्पष्ट दृष्टि: शोध और अध्ययन का आग्रह
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए UPES के कुलपति प्रो. राम के. शर्मा ने वेद, उपनिषद और विज्ञान के समन्वय पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अध्ययन ही वह प्रक्रिया है जो जीवन को सार्थकता देती है। “आज के शोधकर्ता यदि शास्त्र और विज्ञान को साथ लेकर चलें, तो भारत ज्ञान की वैश्विक राजधानी बन सकता है।”
नेपथ्य की शक्ति: आयोजकों और मार्गदर्शकों की उपस्थिति
इस गरिमामय आयोजन की सफलता में अनेक कर्मयोगियों की भूमिका रही। मंच संचालन गजेंद्र खंडूड़ी और बलदेव पाराशर ने संयमित और सहज अंदाज में किया।
कार्यक्रम में प्रांत प्रचारक डॉ. शैलेन्द्र कुमार, विश्व संवाद केंद्र अध्यक्ष सुरेन्द्र मित्तल, निदेशक विजय कुमार, हिमालय हुंकार संपादक रणजीत सिंह ज्याला, विभाग प्रचारक धनंजय, और मनीष बागड़ी सहित अनेक विचारवान सहभागी उपस्थित रहे।
विश्लेषण: क्यों महत्वपूर्ण है नारद जयंती पत्रकारिता के लिए?
आज जब भारतीय मीडिया अनेक प्रकार के दबावों, व्यापारिक हितों और वैश्विक प्रभावों से जूझ रहा है, तब नारद जयंती केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पत्रकारिता की आत्मा की पुनर्पुष्टि बनती है।
नारद संवाद करते थे, प्रचार नहीं। वे सूचनाएं संकलित करते थे, उन्हें विकृत नहीं करते थे। और सबसे बड़ी बात – उनका संवाद सत्य और उद्देश्यपूर्ण होता था।
मुकुल कानितकर का यह कथन – “संवाद केवल बोलना नहीं, राष्ट्र को गढ़ने की साधना है” – आज की पत्रकारिता को नया दृष्टिकोण देता है।
संवाद की दिशा बदलने का अवसर
यह आयोजन केवल एक वार्षिक उत्सव नहीं रहा, यह संवाद के पुनरुत्थान की पहल है। पत्रकारिता को एक मिशन के रूप में देखने वाले इस कार्यक्रम ने यह स्पष्ट किया कि मीडिया तभी देश का मित्र बन सकता है, जब वह राष्ट्रीयता, मूल्य और विवेक की कसौटी पर खरा उतरे।