काशीपुर। अनमोल फाउंडेशन द्वारा Rehabilitation Council of India के तहत Continuous Rehabilitation Education (CRE) कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। यह कार्यक्रम 20 फरवरी से प्रारंभ हुआ था और तीन दिवसीय है, जो 22 फरवरी 2025 तक चलेगा। आज कार्यक्रम का द्वितीय दिवस संपन्न हुआ, जिसमें दिव्यांग बच्चों की पहचान, उनके शीघ्र हस्तक्षेप (Early Intervention) और पुनर्वास से जुड़े महत्वपूर्ण विषयों पर विस्तृत सत्र आयोजित किए गए।
कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में नगर आयुक्त विवेक राय एवं बाल कल्याण समिति, उधम सिंह नगर की सदस्य श्रीमती हरनीत कौर ने प्रतिभागियों को संबोधित किया।
नगर आयुक्त विवेक राय ने दिव्यांग बच्चों की पहचान और उनके पुनर्वास की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि समाज को मानवीय दृष्टिकोण अपनाकर इन बच्चों के लिए कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि दिव्यांगता केवल एक शारीरिक या मानसिक बाधा नहीं है, बल्कि सही मार्गदर्शन और हस्तक्षेप से इन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। इसी क्रम में श्रीमती हरनीत कौर ने किशोरावस्था (Adolescence) में बालिकाओं में होने वाले परिवर्तनों पर चर्चा की और उनके समग्र विकास के लिए आवश्यक सुझाव दिए।सक्षम प्रांत प्रमुख(धीमहि प्रकोष्ठ) उत्तराखंड सतीश चौहान ने दिव्यांगजन सशक्तिकरण में सक्षम संस्था की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि दिव्यांग बच्चों के विकास के लिए समाज को समावेशी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
कार्यक्रम के दौरान DEIC, हल्द्वानी के अर्ली इंटरवेंशनिस्ट दिनेश मठपाल ने Disabilities Identification विषय पर जानकारी दी। उन्होंने कहा कि किसी भी विकलांगता की शीघ्र पहचान से बच्चे के विकास में मदद मिलती है। सेंसरी, न्यूरोलॉजिकल, बौद्धिक और विकासात्मक विकलांगताओं को पहचानने के लिए विभिन्न डेवलपमेंटल स्क्रीनिंग टूल्स का उपयोग किया जाता है, जिससे सही समय पर आवश्यक हस्तक्षेप किया जा सके।
इसके बाद मीनाक्षी चौहान ने Sensory Disabilities – Visual Impairment विषय पर चर्चा करते हुए दृष्टिबाधित बच्चों की पहचान और सहायता की प्रक्रिया को समझाया। पुष्कर ने Hearing Impairment के बारे में विस्तार से जानकारी दी और बताया कि सुनने की समस्या वाले बच्चों के लिए प्रारंभिक जांच कितनी महत्वपूर्ण होती है। सतीश चौहान ने Spectrum Disorder Identification पर व्याख्यान दिया, जिसमें ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर और अन्य न्यूरोडेवलपमेंटल विकारों की पहचान और प्रबंधन पर चर्चा हुई।
कमल पवार ने Intellectual and Developmental Disabilities पर प्रकाश डालते हुए बताया कि बौद्धिक अक्षमता से प्रभावित बच्चों को विशेष शिक्षा और व्यवहार चिकित्सा (Behavioral Therapy) के माध्यम से समर्थ बनाया जा सकता है। अंतिम सत्र में पूनम सिंह ने The Role of Early Intervention in Assessment विषय पर जानकारी दी और बताया कि प्रारंभिक पहचान से बच्चों के भविष्य को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया जा सकता है।
आज के कार्यक्रम में इस क्षेत्र में कार्यरत व पंजीकृत विभिन्न शिक्षकों, चिकित्सकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अभिभावकों ने भाग लिया। प्रतिभागियों ने कहा कि यह प्रशिक्षण सत्र बेहद उपयोगी रहा और इससे दिव्यांग बच्चों की पहचान एवं पुनर्वास के लिए उनकी समझ और कौशल में वृद्धि हुई। कार्यक्रम का उद्देश्य दिव्यांग बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने और समाज में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य करना है।