चूँकि उस ज़माने में बिजली उतनी आती नहीं थी तो हमलोग सुबह तक प्रतीक्षा करते

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रात को घी लगी रोटी का एक टुकड़ा चूहेदानी में रखकर हम लोग सो जाते थे।

रात को लगभग 11-12 बजे ख़ट की आवाज़ आती तो हम समझ जाते थे कि कोई चूहा फंसा है। पर चूँकि उस ज़माने में बिजली उतनी आती नहीं थी तो हमलोग सुबह तक प्रतीक्षा करते थे।

सुबह उठ कर जब हम चूहेदानी को देखते थे तो उसके कोने में हमें एक चूहा फंसा हुआ मिलता था।

 

हम हिन्दू चूँकि जीव-हत्या से परहेज करते हैं इसलिए हमारे बुजुर्ग उस चूहेदानी को उठाकर घर से दूर किसी नाले के पास ले जाते थे और वहां जाकर उसका गेट खोल देते थे ताकि वो चूहा वहां से निकल कर भाग जाए।

मगर हमें ये देखकर बड़ा ताज्जुब होता था कि गेट खोले जाने के बाबजूद भी वो चूहा वहां से भागता नहीं था *बल्कि वहीं कोने में दुबका रहता था।

तब हमारे बुजुर्ग एक लकड़ी लेकर उससे उस चूहे को धीरे से मारते थे और भाग-भाग की आवाज़ लगाते थे पर तब भी वो चूहा अपनी जगह से टस से मस नहीं होता था।

बार-बार उसे लकड़ी से मारने और शोर करने के बाद वो चूहा निकल कर भागता था।

 

जब तक अक्ल कम थी हमेशा सोचता था कि गेट खुला होने के बाद भी ये चूहा भागता क्यों नहीं?

 

पर बाद में जब अक्ल हुई तो समझ आया कि रात के 11-12 बजे चूहेदानी में कैद हुए चूहे ने सारी रात उस कैद से बाहर निकलने की कोशिश की होगी, हर दिशा में जाकर प्रयास किया होगा पर जब उसे ये एहसास हो गया कि अब इस कैद से मुक्ति का कोई रास्ता नहीं है तो थक-हार कर उसने अपने दिलो-दिमाग को ये समझा दिया कि अब मेरा भविष्य इस पिंजरे के अंदर ही है, इसी कैद में मुझे जीना और मरना है। इसलिए सुबह जब चूहेदानी का गेट खोल भी दिया गया तो भी उस चूहे का माइंडसेट यही बना हुआ था कि मैं तो कैद में हूँ, मैं तो गुलाम हूँ, मैं बाहर निकल ही नहीं सकता।

 

इस माइंडसेट ने उसे ऐसा बना दिया था कि सामने खुला गेट और मुक्ति का रास्ता दिखते हुए भी उसे नहीं दिख रहा था।

 

अपना हिन्दू समाज भी ऐसा ही था। _हजारों सालों की गुलामी में हमने आजादी के लिए बहुत बार प्रयास किये पर आजादी नहीं मिली तो हमारा माइंडसेट ऐसा बन गया कि हम तो गुलामी करने के लिए ही पैदा हुए हैं, हम आजाद हो ही नहीं सकते।_

 

इसलिए मुग़ल गये तो हमने अंग्रेजों की गुलामी शुरू कर दी और जब अंग्रेज गये। यानि गेट खुला, तो भी हमें आजादी का रास्ता नज़र नहीं आया, हम एक वंश की गुलामी में लग गये।

 

वंश की गुलामी करते-करते इतने गिर गये कि हममें गुलामी करने को लेकर भी प्रतिस्पर्धा होने लगी कि कौन सबसे बेहतर गुलामी कर सकता है।

 

एक खानदान की गुलामी करने में हम इतने गिरे, कि हमारे अपने नेताओं ने ही हिन्दू जाति को आतंकवाद से जोड़ दिया।

_यानि जिस बात को कहने की हिम्मत आज तक पाकिस्तान ने भी नहीं की, वो बात गुलाम मानसिकता से ग्रस्त, हमारे अपने लोगों ने कही।_

 

हम चूहे वाली माइंडसेट में थे, इसलिए समुचित प्रतिकार नहीं कर सके तो उनका हौसला और बढ़ा।

 

फिर श्रीराम और श्रीकृष्ण को ‘मिथक चरित्र’ घोषित कर, वो राम-सेतु जैसे हमारे आस्था-केन्द्रों को तोड़ने की ओर बढ़े।

 

फिर हमारे भाई-बांधवों का हक छीनकर मजहबी आधार पर आरक्षण की घोषणाएँ करने लगे।

 

फिर एक दिन ये घोषणा कर दी कि जिस देश को तुम्हारे पूर्वजों ने अपने खून से सींचा है, उसके संसाधनों पर पहला हक तुम्हारा नहीं है।

 

हम अब भी उस चूहे वाली माइंडसेट में थे, इसलिए फिर एक दिन उन्होंने कहा कि हम “लक्षित हिंसा बिल” लायेंगे और साबित करेंगे कि तुम बहुसंख्यक हिन्दू जुल्मी हो, दंगाई हो, देश के मासूम अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने वाले हो, इसलिए तुम्हारे लिए एक सख्त सजा का प्रावधान रखा जाएगा।

 

इस अंतहीन काली रात के बाद अब सुबह हो गई थी, लकड़ी लेकर हमें जगाने वाला एक आदमी आ चुका था। जो हमें बता रहा था कि अब बहुत हो चुका कैद से निकलो, गेट खुला हुआ है।

 

उस आदमी ने पूरे देश में घूम-घूम कर हमें गुलामी वाले लंबी निद्रा से जगाया, हमारे सामने खुला दरवाज़ा दिखाया।

हम जागने लगे और 16 मई, 2014 को गुलामी वाले कैद से निकल गये।

 

कुछ गुलाम आज भी कह रहे थे

मंदिर तो बन ही नही सकता

370 तो हट ही नहीं सकती

हिंदुओ के मंदिर मुक्त हो ही नही सकते

समान नागरिक और CAA आ ही नही सकता

 

यहां तक की 370 के हटने और मंदिर के बनने के बाद भी इन्हे एहसास ही नही हो रहा की ये हो चुका है …..गुलामी में रहने के कारण इन्हें अभी भी अंधेरा कायम रहे की रट लगाए है

 

जो आज भी पिंजड़े से नहीं निकल रहे है उनसे भी निवेदन हैं कि अब तो निकल जाइये।

 

वैसे भी हम वो दरवाजा हमेशा के लिए तोड़ चुके हैं, आपको समझने की जरूरत है।

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